नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने वाले है महादेव के भक्तो के तीर्थस्थान "Kedarnath Temple Opening Date 2023 " के बारे में। अगर आप भी केदारनाथ महादेव जाने की इच्छा रहते है और आप भी केदारनाथ मंदिर खुलने की तारीख 2023 के बारे में जानकारी लेना चाहते है तो आप बिलकुल सही जगह आए है ,आज हम आपको केदारनाथ मंदिर खुलने की तारीख के बारे तो बताएंगे ही और हम बात करेंगे केदारनाथ मंदिर कितने साल पुराना है, केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया जैसी जानकारी । चलिए शुरू करते है।
Kedarnath Temple Opening Date 2023
केदारनाथ मंदिर देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है और इसके खुलने की तिथि की घोषणा हो चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भक्त इस साल 25 अप्रैल से सुबह 6:30 बजे से इस मंदिर में दर्शन कर सकेंगे।उत्तराखंड में ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। यह मंदिर चार धाम तीर्थयात्रा सर्किट का हिस्सा है, और भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक का घर भी है। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि गढ़वाल क्षेत्र के भीतर स्थित चार तीर्थों को सामूहिक रूप से उत्तराखंड के चार धाम के रूप में जाना जाता है।
केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Kedarnath)
official website के अनुसार, केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय May, June, July, August, September, October, और November है।
Kedarnath Opening and Closing Dates:
1. घूमने का सबसे अच्छा समय: अप्रैल-अक्टूबर। घूमने का सबसे अच्छा समय है और भारी बर्फबारी के कारण, सर्दियों के महीनों का शहर बंद हो जाएगा
2. दर्शन का समय: मंदिर सुबह 7:00 बजे खुलता है, दोपहर 12:00 बजे के करीब बंद होता है, फिर शाम 5:00 - रात 8:00 बजे खुलता है
3. केदारनाथ मंदिर खुलने की तारीख: 25 अप्रैल 2023 सुबह 6:20 AM
4. केदारनाथ मंदिर बंद होने की तारीख 2023: नवंबर
5. केदारनाथ कैसे पहुँचें: यात्रा करने का सबसे अच्छा समय: अप्रैल-जून
उत्तराखंड को देवभूमि अर्थात "देवो की भूमि" कहा जाता है। यहाँ पर हजारों साल पुराने कई मंदिर हैं। उनमें से सबसे प्रसिद्ध बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चार स्थानों में स्थित मंदिर हैं, जिन्हें "चार धाम" कहा जाता है।और ये धाम भारत की पवित्र नदियों को समर्पित चार पवित्र मंदिर हैं। पूरे भारत और विदेशों से तीर्थयात्री "चार धाम यात्रा" के रूप में मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं। चार धाम यात्रा हिंदू धर्म में बहुत महत्व और पवित्रता रखती है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक हिंदू को अपने जीवन में कम से कम एक बार "चार धाम" की यात्रा अवश्य करनी चाहिए, ताकि मंदिरों की शोभा बढ़ाने वाले देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांडवोने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की थी जिसके बाद इस अति भव्य मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था | भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था | हिमालय में स्थित होने के कारण केदारनाथ मंदिर दर्शन के लिए पुरे साल के लिए खुला नहीं रहता । यह मंदिर में दर्शन का समय भारतीय ऋतुओ के अनुसार अप्रैल से नवम्बर के मध्य में ही खुलता है | शीतकाल में केदारनाथ घाटी बर्फ से पूरी ढंक जाती है। केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा मुहूर्त निकाला जाता है | भगवान शिव की पूजाओं में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम जैसे प्रमुख हैं।
केदारनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की कथा को हम संक्षेप में जानते है | कहा जाता है की भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि दोनों हिमालय के केदार श्रृंग तपस्या कर रहे थे | नर और नारायण ऋषि की भक्ति-आराधना से भगवान शिव प्रकट होते है और उनको दर्शन देते है | फिर उनकी प्रार्थना सुनकर उनको ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान प्रदान करते है | यह स्थल केदारनाथ हिमालय पर्वत के केदार नामक श्रृंग पर है |
पंचकेदार की कथा महाभारत काल से जुडी हुई है | महाभारत के युद्ध में कौरवो को हराकर पांडवो ने विजय हासिल की | उसके बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए वो भगवान शिव का दर्शन करना चाहते थे | लेकिन भगवान शिव उनसे रूठे हुए थे | जब पांडव भगवान शिव के दर्शन हेतु काशी गए,पर भगवान उन्हें वहा नहीं मिले | फिर पांडव भगवान को ढूंढने के लिए हिमालय पर्वत पर पहुँचते है, लेकिन भगवान उनसे रूठे हुए थे, जिसके कारन वो उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे, इस लिए वो वहा से भी अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा कर बसे |
पांडव भी अपने निर्णय पर अडग थे, वो भगवान शिव के पीछे पीछे केदार आ गए | पांडव उनको पहचान न सके इसलिए भगवान शिव ने बेल का रूप धारण कर लिया और पशुओ के झुंड में मिल गए | तभी पांडवो को संदेह हो गया | फिर भीमसेन ने विशाल स्वरूप को धारण कर अपने पैरो को दो पहाड़ो पर फैला दिए | तब गाय-बैल और आदि पशु तो भीमसेन के पैरो के नीचे से निकल गए, लेकिन भगवान भोलेनाथ जो बैल के स्वरूप में थे उनको भीमसेन के पैरो के नीचे से नहीं निकलना अनुचित लगा | वो बैल धीरे धीरे भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा , तभी भीमसेन ने उस बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया | भगवान भोलेनाथ पांडवो की अतूट श्रद्धा, भक्ति और संकल्प को देख कर प्रसन्न हो गए |
फिर भगवान शिव ने उनको दर्शन देकर भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति दी और उनके पापो से उनको मुक्त किया | तब से लेकर आज तक भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के स्वरूप में श्री केदारनाथ में बिराजमान हैं | और भक्त गण उनकी पूजा अर्चना करते है | ऐसा माना जाता है कि बैल के स्वरूप में से भगवान शिव जब अंतर्ध्यान हो गए, तो उनका धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, उनका मुख रुद्रनाथ में, उनकी नाभि मद्महेश्वर में और उनकी जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए | काठमांड अब वहां भगवान पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है | केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर और कल्पेश्वर को पंचकेदार कहा जाता है | आज इन सभी जगहों पर भगवन शिव के भव्यातिभव्य मंदिर बने हुए है |
केदारनाथ में पांच नदियों का संगम भी है | जिसमे मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नामक नदियो का समावेश होता है | इन नदियों में से कुछ नदियों का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन इन पांच नदियों में से अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी नदी के किनारे है बसा है केदारनाथ धाम।
केदारनाथ कैसे पहुंचे
दोस्तों क्या आप भी जानना चाहते है की केदारनाथ केस पहुंचे ? तो चलिए हम आपको बताते है। जैसा की आगे हमने जाना की केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित है। हरिद्वार उत्तराखंड की चार धाम यात्रा शुरू करने का पारंपरिक बिंदु है। हरिद्वार मैदानी इलाकों में है और नई दिल्ली सहित भारत के अन्य स्थानों से सड़क और ट्रेन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। यह देहरादून से सड़क मार्ग से भी पहुँचा जा सकता है, जहाँ हवाई अड्डा है। इसलिए, तीर्थयात्री Delhi और India के अन्य स्थानों से Dehradun के लिए उड़ान भर सकते हैं और फिर सड़क मार्ग से Haridwar जा सकते हैं।
Haridwar गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है जो रोजाना शाम को और साल भर होती है। तीर्थयात्री Haridwar से चार धाम यात्रा के अगले पड़ाव यानी Rishikesh तक सड़क मार्ग से जा सकते हैं, जो मैदानी इलाकों में भी है। Rishikesh में भी रोजाना शाम को गंगा आरती होती है।
By Flight:
Jolly Grant Airport (देहरादून से 35 किमी) 235 किमी की दूरी पर स्थित केदारनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है। हवाई अड्डा दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, Gaurikund Jolly Grant Airport के साथ अच्छी तरह से मोटर योग्य सड़कों से जुड़ा हुआ है। Jolly Grant Airport से Gaurikunके लिए टैक्सियाँ उपलब्ध हैं।
By Train:
Gaurikund का निकटतम रेलवे स्टेशन Rishikesh है, जो NH58 पर गौरीकुंड से 243 किमी पहले स्थित है। Rishikesh भारत के प्रमुख स्थलों के साथ रेलवे नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। Gaurikund अच्छी तरह से Rishikesh के साथ मोटर योग्य सड़कों से जुड़ा हुआ है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि टैक्सी और बसें Rishikesh, Srinagar, Rudraprayag, Tehri और कई अन्य स्थलों से Gaurikund के लिए उपलब्ध हैं।
By Road:
Gaurikund Uttarakhand राज्य के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर योग्य सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ISBT कश्मीरी गेट नई दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर के लिए बसें उपलब्ध हैं।Uttarakhand राज्य के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि से गौरीकुंड के लिए बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। Gaurikund National Highway 58 द्वारा Ghaziabad से जुड़ा हुआ है।
केदारनाथ मंदिर कहां है
भारत के उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर है, जो बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। मंदिर में स्थित स्वयंभू ( स्वयं उत्पन्न होने वाला ) शिवलिंग अति प्राचीन हैं। भगवान शिव का ज्योति रूपी स्वरूप ही ज्योतिर्लिंग कहलाता है, जो अनंत है ( जिसका आरम्भ और अंत स्वयं ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं ढूंढ पाए थे) | कहा जाता है की इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है| यह मंदिर करोडो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ वातावरण मनोहर और आनंदित रहता है | यहाँ का द्रुश्य देखकर हृदय आनंद विभोर हो उठता हैं और परम आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है | लोग इस जगह के सौंदर्य और वातावरण को देख के कहते है की "यहाँ पर हवा सीधे स्वर्ग से आती"है | केदारनाथ तीर्थ कला का उत्तम नमूना हैं।
भारत के सबसे प्रतिष्ठित मंदिर स्थलों में से एक, केदारनाथ शहर शक्तिशाली गढ़वाल हिमालय में स्थित है। श्रद्धेय केदारनाथ मंदिर के चारों ओर बना यह शहर चोराबाड़ी ग्लेशियर के पास 3,580 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जो मंदाकिनी नदी का स्रोत है। भगवान शिव को समर्पित, प्राचीन मंदिर में उत्कृष्ट वास्तुकला है और यह बहुत बड़े लेकिन समान आकार के ग्रे पत्थर के स्लैब से बना है। मंदिर के अंदर एक शंक्वाकार चट्टान की संरचना को उनके "सदाशिव" में भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है
उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनों दर्शन तीर्थो की बड़ी महिमा है | इस दोनों तीर्थ का माहात्म्य एक दूजे जुड़ा हुआ है, क्योकि ऐसा कहा जाता है की अगर आपको बद्रीनाथ धाम की यात्रा करनी है तो आपको पहले केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने पड़ते है, अगर आप ऐसा नही करते ही तो आपकी यात्रा सफल नहीं कहलाती है | केदारनाथ तीर्थ बहुत ही प्राचीन है | यह कितना पुराना है इसका कोई स्पस्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है , क्योकि यहाँ लोग हजारो सालो से इस तीर्थ की यात्रा करते है |
केदारनाथ मंदिर मन्दाकिनी नदी के पास ही स्थित है, जो की चौरीबारी हिमनंद कुंड से निकलती है | केदारनाथ मंदिर ६ फिट ऊचे पत्थर के चौकोर चबूतरे पर बनाया गया हैं और मंदिर पत्थरो से कत्यूरी शैली में निर्माण किया गया है | उस समय में इतनी ऊंचाई पर कैसे मंदिर का निर्माण हुआ होगा , ये भी सोचने वाली बात है | केदारनाथ मंदिर की तीन ओर पहाड़ है | एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड |
मंदिर के सामने की ओर तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। भवन के दक्षिण की ओर मंदिर की दक्षिण की और रहते है | मंदिर के पीछे के भाग में जल के कुंड है, जहा भक्त गण आचमन और तर्पण करते है | मंदिर से थोड़ी ही दुरी पर आदि गुरु शंकराचार्य की समाधी है, वहा पर भी भक्त दर्शन करके पावन होते है |
केदारनाथ मंदिर का गर्भगृह अति प्राचीन है जिसे 80 वीं शताब्दी का माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग बैल के कूबड़नुमा आकृति में स्थापित हैं, जो स्वयंभू है | बाहर प्रांगण में नन्दी महाराज बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह और मंडप की चारो और प्रदक्षिणा पथ है | शिवलिंग के इस प्रकार से त्रिकोणात्मक बैल के पीठ स्वरुप के संरचना के पीछे एक महाभारत कालीन प्रेरक प्रसंग भी हैं।
Haridwar to Kedarnath Distance
सड़क मार्ग से हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 239 किलोमीटर है
फ्लाइट से हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 123 किलोमीटर है
हरिद्वार से केदारनाथ तक सड़क मार्ग से यात्रा का समय 5:19 घंटे है
हरिद्वार जॉली ग्रांट में निकटतम हवाई अड्डा (29.95, 78.16)
केदारनाथ जॉली ग्रांट में निकटतम हवाई अड्डा (30.73, 79.07)
New Delhi to Kedarnath Distance
सड़क मार्ग से दिल्ली से केदारनाथ की दूरी 452 किलोमीटर है
फ्लाइट से दिल्ली से केदारनाथ की दूरी 296 किलोमीटर है
सड़क मार्ग से दिल्ली से केदारनाथ की यात्रा का समय 9:10 बजे है
दिल्ली में निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी (28.61, 77.21)
केदारनाथ जॉली ग्रांट में निकटतम हवाई अड्डा (30.73, 79.07)
Dehradun to Kedarnath Distance
सड़क मार्ग से देहरादून से केदारनाथ की दूरी 254 किलोमीटर है
फ्लाइट से देहरादून से केदारनाथ की दूरी 109 किलोमीटर है
देहरादून से केदारनाथ तक सड़क मार्ग से यात्रा का समय 5:53 घंटे है
देहरादून जॉली ग्रांट में निकटतम हवाई अड्डा (30.32, 78.03)
केदारनाथ जॉली ग्रांट में निकटतम हवाई अड्डा (30.73, 79.07.2019)
FAQ's Kedarnath के बारे में
प्रश्न - 1. केदारनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर - पत्थरों द्रारा कत्यूरी शैली से बने केदारनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडव के वंशी जनमेजय द्रारा कराया गया था। यहां पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन मानी जाती है। साथ ही ये भी कहा जाता है की आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। केदारनाथ मंदिर हिमालय के केदार पर्वत पर अवस्थित है।
प्रश्न - 2. केदारनाथ मंदिर कब बना और किसने बनवाया?
उत्तर - राहुल सांकृत्यायन के अनुसार केदारनाथ मंदिर 12 -13 वीं शताब्दी का बताया गया है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार ये मंदिर उनका बनवाया हुआ है जो 1076 -99 काल के थे। एक मान्यता के अनुसार वर्तमान में जो मंदिर है वो 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया है, जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में बना हुआ है।
प्रश्न - 3. केदारनाथ की असली कहानी क्या है?
उत्तर - पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार शिव भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकल पड़ा। पहले यातायात की सुविधाएं न होने के कारण वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो मिलता उससे वह केदारनाथ का रास्ता पूछ लेता और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करता रहता। भक्त को चलते-चलते महीनों बीत गए।
प्रश्न - 4. केदारनाथ शिवलिंग के पीछे क्या कहानी है?
उत्तर - दोस्तों ऐसा भी कहा जाता है कि केदारनाथ महादेव का मंदिर सबसे पहले पांडवों द्रारा बनाया गया था, मगर यह स्थान ठंडा होने की कारण यहां बना मंदिर और शिवलिंग दोनों ही बर्फ के नीचे दब गए थे। इसके बाद केदारनाथ धाम का निर्माण आदिशंकराचार्य ने करवाया था। और आज भीआदिशंकराचार्य की समाधि मंदिर के पीछे ही है ।
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